मैंने कविता लिखी
जिसमें तुम न थे
तुम्हारी आहट थी
और इस आहट में
एक मूक छटपटाहट
मैंने कविता लिखी
जिसमें उभरे हुए कुछ अक्षर थे
यद्यपि वो फूल नहीं थे
पर फिर भी उनमें गंध थी
मैंने कविता लिखी
जिसमें इन्द्रधनुष नहीं था
हाँ, प्यासे कुछ लोग थे
क्योंकि उसमें बादल था
मैंने कविता लिखी
जिसमें कविता की हूक थी
परम्परा न थी
पर फिर भी आग्रह तो था।
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