कई बार निर्निमेष अविरत देखता हूँ उसे

By Himanshu Pandey

कई बार निर्निमेष अविरत देखता हूँ उसे यह निरखना उसकी अन्तःसमता को पहचानना है मैं महसूस करता हूँ नदी बेहिचक…

एक शान्त मन ही व्रती होता है

By Himanshu Pandey

आजकल एक किताब पढ़ रहा हूँ – आचार्य क्षेमेन्द्र की औचित्य-दृष्टि। किताब बहुत पुरानी है- आवरण के पृष्ठ भी नहीं…

दिनों दिन सहेजता रहा बहुत कुछ …

By Himanshu Pandey

(१)दिनों दिन सहेजता रहा बहुत कुछजो अपना था, अपना नहीं भी था,मुट्ठी बाँधे आश्वस्त होता रहाकि इस में सारा आसमान…

मैं समर्पित साधना की राह लूँगा…

By Himanshu Pandey

मुझसे मेरे अन्तःकरण का स्वत्वगिरवी न रखा जा सकेगाभले ही मेरे स्वप्न,मेरी आकांक्षायेंसौंप दी जाँय किसी बधिक के हाँथों कम…

हजारी प्रसाद द्विवेदी की रचनाओं में मानवीय संवेदना

By Himanshu Pandey

ऋग्वेद में वर्णन आया है : ‘शिक्षा पथस्य गातुवित’, मार्ग जानने वाले , मार्ग ढूढ़ने वाले और मार्ग दिखाने वाले,…

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