मृत्यु अर्थहीन हो गयी ।
रूप बिंध गया अरूप-सा
सृष्टि दृश्यहीन हो गयी ।
भाव का अभाव घुल गया
भावना तल्लीन हो गयी ।
टूट गयी सहज बाँसुरी
व्यथा तलफत मीन हो गयी ।
बाँध लूँ किसे, बँधू कहाँ ?
द्विधा विकल्पहीन हो गयी ।
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