वृक्ष-दोहद

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रमणी के नर्म वाक्यों से फूल उठा मंदार: वृक्ष दोहद-8

By Himanshu Pandey

मुझे क्षण-क्षण मुग्ध करती, सम्मोहित करती वृक्ष दोहद की चर्चा जारी है। कैसा विश्वास है कि वयःसंधि में प्रतिबुद्ध कोई…

सुरूपिणी की मुख मदिरा से सिंचकर खिलखिला उठा बकुल: वृक्ष दोहद-7

By Himanshu Pandey

कवि समय की प्रसिद्धियों में अशोक वृक्ष के साथ सर्वाधिक उल्लिखित प्रसिद्धि है बकुल वृक्ष का कामिनियों के मुखवासित मद्य…

सुकुमारी ने छुआ और खिल उठा प्रियंगु: वृक्ष दोहद-6

By Himanshu Pandey

  प्रियंगु अपनी अनेक संज्ञाओं, यथा फलप्रिया, शुभगा, नन्दिनी, मांगल्य, प्रिया, श्रेयसा, श्यामा, प्रियवल्लि, कृष्णपुष्पी इत्यादि के साथ प्राचीन संस्कृत…

सुन्दरियों के गान से विकसित हुआ नमेरु: वृक्ष दोहद-5

By Himanshu Pandey

स्त्रियोचित प्रतिभाओं में सर्वाधिक प्रशंसित और आकर्षित करने वाली प्रतिभा उनका मधु-स्वर-संपृक्त होना है। स्त्री का मधुर स्वर स्वयं में…

शुभे! मृदु-हास्य से चम्पक खिला दो: वृक्ष दोहद-4

By Himanshu Pandey

यह देखिये कि बूँदे बरसने लगीं हैं, सूरज की चातुरी मुंह छुपा रही है और ग्रीष्म ने हिला दिये हैं…

रूपसी गले मिलो! कि कुरबक फूल उठे: वृक्ष दोहद-3

यूँ तो अनगिनत पुष्प-वृक्षों को मैंने जाना पहचाना नहीं, परन्तु वृक्ष दोहद के सन्दर्भ में कुरबक का नाम सुनकर मन…

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