ऐसी मँहगाई है कि…
ऐसी मँहगाई है कि चेहरा हीबेंच कर अपना खा गया कोई।अब न अरमान हैं न सपने हैंसब कबूतर उड़ा गया…
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ऐसी मँहगाई है कि चेहरा हीबेंच कर अपना खा गया कोई।अब न अरमान हैं न सपने हैंसब कबूतर उड़ा गया…
यूँ तो सीधी सीधी निंदक वंदना नहीं की, पर ‘निंदक नियरे राखिये’ की लुकाठी लेकर कबीर ने आत्म परिष्कार की…
साल भर पहले जब वह एक हफ्ते के लिए मेरे घर आयी थी, उसे ‘ई-मेल’ करना सिखाया था- उसने समझा…
पहले आती थी हाले दिल पे हंसीअब किसी बात पर नहीं आती। कैसे आए? मात्रा का प्रतिबन्ध है। दिल के…
बहुत वर्षों पहले से एक बूढ़े पुरूष और स्त्री की आकृति के उन खिलौनों को देख रहा हूँ जिनके सर…
आज का मनुष्य यह भली भाँति समझता है कि उसकी सफलता के मूल में वह सद्धर्म (चाटुकारिता) है, जिसे निभाकर…