उस समाज पर गाज गिरे जिसके तुम नायक
एक पार्टी का झंडा लिये एक भीड़ मैदान से गुजरी है। अपनी पड़ोस का कुम्हार उसी में उचक रहा है।…
एक पार्टी का झंडा लिये एक भीड़ मैदान से गुजरी है। अपनी पड़ोस का कुम्हार उसी में उचक रहा है।…
दूसरों के अनुभव जान लेना भी व्यक्ति के लिये अनुभव है। कल एक अनुभवी आप्त पुरुष से चर्चा चली। सामने…
कैसे मुक्ति हो? बंधन और मोक्ष कहीं आकाश से नहीं टपकते। वे हमारे स्वयं के ही सृजन हैं। देखता हूं…
कविता की दुनिया में रचने-बसने का मन करता है। समय के तकाजे की बात चाहे जो हो, लेकिन पाता हूं…
सोचता हूं, इतनी व्यस्तता, भाग-दौड़, आपाधापी में कितनी रातें, कितने दिन व्यतीत किये जा रहा हूं। क्या है जो चैन…
पहले आती थी हाले दिल पे हंसीअब किसी बात पर नहीं आती। कैसे आए? मात्रा का प्रतिबन्ध है। दिल के…