ले प्रसाद जय बोल ..
बजी पांचवी शंखकथा वाचक द्रुतगामी की।ले प्रसाद जय बोलसत्यनारायण स्वामी की। फलश्रुति बोले जब मन होचूरन हलवा बनवाओबांट-बांट खाओ पंचामृतमें…
कविता श्रेणी के अन्तर्गत छंदबद्ध एवं छंदमुक्त कविताएँ संकलित की गई हैं। साथ ही ग़ज़लें, गीत, हाइकु, दोहे इत्यादि भी इसी श्रेणी में उपश्रेणियाँ बनाकर प्रकाशित की गई हैं। छंदबद्ध कविताओं के अन्तर्गत सुभाषित, भजन, क्रियात्मक गीत एवं संवाद गीत संकलित हैं तथा छंदमुक्त कविताओं के अन्तर्गत मुक्त छंद की कविताएँ, हाइकु एवं लघु कविताएँ संकलित हैं। यह कविताएँ स्वरचित भी हैं तथा अन्य कवियों की भी प्रिय रचनायें किसी विशेष प्रयोजनवश सुविधानुसार प्रकाशित की गई हैं।
बजी पांचवी शंखकथा वाचक द्रुतगामी की।ले प्रसाद जय बोलसत्यनारायण स्वामी की। फलश्रुति बोले जब मन होचूरन हलवा बनवाओबांट-बांट खाओ पंचामृतमें…
प्रार्थना मैं कर रहा हूं गीत वह अव्यक्त-सा अनुभूतियों में घुल-मिले। हंसी के भीतर छुपा बेकल रुंआसापन और सम्पुट में…
तुमने अपने हृदय में जो अनन्त वेदनासमो ली हैऔर उस वेदना को हीअपनी अमूल्य सम्पत्ति समझउसे पोषित करते होवस्तुतःउसी से…
वह तुम्हारा मुक्त हृदय था जिसने मुझे प्यार का विश्वास दिया, मैं तुम्हें प्यार करने लगा। मैं तुम्हें प्यार करता…
अब का पूछ्त हउआ हमसे कि होली का होला। कइसे तोंहके हाल बताई कवन तरीके से समझाई कइसन बखत रहल…
हम सबके अपने-अपने अलग-अलग ईश्वर कानाफूसी किया करते हैं। क्या संसार के हम सभी लोगों को चुप नहीं हो जाना…