The poem “He came and sat by my side but I woke not” is a beautiful and evocative piece by the famous Indian poet Rabindranath Tagore. It is part of his collection of poems titled “Gitanjali”. In this particular poem, Tagore expresses deep regret for missing the divine presence that visited him. The poem captures the essence of the poet’s sorrow for not being awake to the divine presence.
Original Text of the Poem
He came and sat by my side but I
woke not. What a cursed sleep it was,
O miserable me!
He came when the night was still;he
had his harp in his hands and
my dreams became resonant with its
melodies.
Alas! Why are my sights all thus lost?
Ah, Why do I ever miss his sight
whose breath touches my sleep ?
वह आया आ बैठ गया अत्यन्त हमारे पास रवींद्रनाथ टैगोर की ‘गीतांजलि’ संग्रह की कविता संख्या 26 है। इस कविता में, टैगोर ने ईश्वरीय उपस्थिति को याद करते हुए गहरा खेद व्यक्त किया है कि वह जान नहीं पाये जब ईश्वर एकदम पास आकर बैठ गया था। कवि ने अपनी उस नींद को शापित बताया है जिसके कारण वह ईश्वर की उपस्थिति में जाग नहीं पाए, जो एक वीणा लेकर आए थे और जिनका संगीत उनके सपनों के साथ गूंज रहा था।
Hindi Translation by Prem Narayan Pankil
वह आया आ बैठ गया अत्यन्त हमारे पास
गयी न हाय निगोड़ी निद्रा मैं हतभाग्य उदास।
निशा शांत थी थी उसके करतल में शोभित वीण
सजा हुआ था मधुर गीत का स्वर संधान प्रवीण
वीण-राग में राग मिलाया स्वप्नों ने सोल्लास –
गयी न हाय निगोड़ी निद्रा मैं हतभाग्य उदास।
हाय चूक क्यों व्यर्थ हो गयी मेरी सारी रात
चूक-चूक जाती क्यों ‘पंकिल’उसकी दर्शन बात
छू जाती निद्रा को उसकी हाय निकटतम श्वांश-
गयी न हाय निगोड़ी निद्रा मैं हतभाग्य उदास।