अभी सुबह नहीं हुई है, पर जाग गया हूँ। एक अनोखी पुकार मन को वर्षों से आकर्षित करती रहती है, उसी को गुनगुना रहा हूँ। प्रभु आप जगो, परमात्म जगो। जगा रहा हूँ ईश्वर को या फिर अपने आप को, पता नहीं। इस पुकार को नीचे लिख रहा हूँ। इस पुकार और इसके पुकारने वाले के बारे में विस्तार से लिखूंगा अपने दूसरे ब्लॉग पर। फिलहाल ‘सच्चा’ की सच्ची पुकार गा लेने का मन कर रहा है। सच में प्रभु के जागने का वक्त भी शायद हो गया लगता है-
मेरे सर्व जगो सर्वत्र जगो।
प्रभु आप जगो परमात्म जगो॥
दुःखांतक खेल का अंत करो।
प्रभु अंत करो अब अंत करो॥
सुखान्तक खेल प्रकाश करो।
प्रभु आप जगो परमात्म जगो॥
प्रभु आप जगो – ऑडियो
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