कैसे मुक्ति हो?
कैसे मुक्ति हो? बंधन और मोक्ष कहीं आकाश से नहीं टपकते। वे हमारे स्वयं के ही सृजन हैं। देखता हूं…
कैसे मुक्ति हो? बंधन और मोक्ष कहीं आकाश से नहीं टपकते। वे हमारे स्वयं के ही सृजन हैं। देखता हूं…
Photo: From Facebook-wall of Pawan Kumar खो ही जाऊं अगर कहीं किसी की याद में तो बुरा क्या है? व्यर्थ…
बात, यदि अधूरी है तो उसका अर्थ नहीं, यदि संभावनायें हैं तो उसे पूर्ण कर लेना व्यर्थ नहीं। कहा था…
कविता की दुनिया में रचने-बसने का मन करता है। समय के तकाजे की बात चाहे जो हो, लेकिन पाता हूं…
एक खामोशी-सी दिखी एक इंतिजार भी दिखा अनसुलझी आंखों में बेकली का सिमटा ज्वार भी दिखा, आशाओं के दीप भी…
सोचता हूं, इतनी व्यस्तता, भाग-दौड़, आपाधापी में कितनी रातें, कितने दिन व्यतीत किये जा रहा हूं। क्या है जो चैन…