Description unavailable
 (Photo credit: soul-nectar)

कुछ अभीप्सित है
तुम्हारे सामने आ खड़ा हूँ
याचना के शब्द नहीं हैं
ना ही कोई सार्थक तत्त्व है
कुछ कहने के लिए तुमसे।

यहाँ तो कतार है
याचकों, आकांक्षियों की,
सब समग्रता से अपनी कहनी
कहे जा रहे हैं

न तो मेरी तुम्हारे मन्दिर में
कुछ कहने की सामर्थ्य है
ना ही कुछ करने की,
तुम्हारे श्रृंगार में
एक भी अंश मेरा नहीं,
फ़िर भी आ खड़ा हूँ।

क्या स्नेह न दोगे,
स्वीकार न करोगे मेरा अभीप्सित ?
अनवरत संघर्षों में उलझा मेरा जीवन
तुम्हारे सामने ही तो व्यक्त है,
हर मौन, संवाद होकर प्रस्फुटित है,
और मैं अकिंचन
तुम्हारे सामने ही तो व्यक्त हूँ।

Categorized in:

Poetry, Ramyantar,

Last Update: June 19, 2021

Tagged in:

,