The song that I came to sing remains unsung is one of the most remarkable poems from Tagore’s Gitanjali. Rabindranath Tagore is the poet of the soul! His words resonate across time, touching hearts with their depth and beauty.
Original Text of the Poem
The song that I came to sing remains
unsung to this day.
I have spent my days in stringing and
in unstringing my instrument.
The time has not come true, the words have
not been rightly set; only there is the
agony of wishing in my heart.
The blossom has not opened; only the
wind is sighing by.
I have not seen his face, nor have
I listened to his voice; only I have
heard his gentle footsteps from the
road before my house.
The live long day has passed in spreading
his seat on the floor; but the lamp
has not been lit and I can not ask
him into my house.
I live in the hope of meeting with him;
but this meeting is not yet.
‘गाने आया जो अनगाया है अब तक वो गीत रे’ गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर की प्रसिद्ध कविता है, जो उनके प्रसिद्ध काव्य संग्रह ‘गीतांजलि’ में संकलित है। टैगोर आत्मा के कवि हैं। उनके शब्द अप्रतिम गहनता और विशुद्ध सौन्दर्य से प्लावित हैं और हृदय का अतलान्त स्पर्श करते हैं।
Hindi Translation by Prem Narayan Pankil
गाने आया जो अनगाया है अब तक वो गीत रे
वीण खोलते कसते वासर गये अमोलक बीत रे।
सही समय आया न बज सके उचित शब्द संभार
इच्छाओं की पीड़ा का ही था उर में अधिकार
अठखेली करता मारुत पर खिले न सुमन सप्रीत रे
वीण खोलते कसते वासर गये अमोलक बीत रे।
देखा बदन न उसका उसके स्वर न सुन सके कान
उसकी पगध्वनि का ही बस कर पायी श्रुति संधान
गृह समीप पथ से निकला जब मंथर गति मनमीत रे
वीण खोलते कसते वासर गये अमोलक बीत रे।
सेज बिछाते बीता वासर जला न पाया दीप
बुला न सका प्राणधन को निज आलय बीच समीप
मिलन-आस में हूँ ’पंकिल’ पर मिला न कभी पुनीत रे
वीण खोलते कसते वासर गये अमोलक बीत रे।