कोई भाया न घर तेरा घर देखकर
जी दुखी अपना यह खंडहर देखकर।
आ गिरा हूँ तुम्हारी सुखद गोद में
चिलचिलाती हुई दोपहर देखकर।
साँस में घुस के तुमने पुकारा हमें
हम तो ठिठके थे लम्बा सफर देखकर।
अब किसी द्वार पर हमको जाना नहीं
तेरे दर पर ही अपनी गुजर देखकर।
Leave a Comment