सम्हलो कि चूक पहली इस बार हो न जाये
सब जीत ही तुम्हारी कहीं हार हो न जाये।
हर पग सम्हल के रखना बाहर हवा विषैली
नाजुक है बुद्धि तेरी बीमार हो न जाये।
अनुकूल कौन-सा तुम मौका तलाशते हो
जागो, कहीं तुम्हारी भी पुकार हो न जाये।
हर रोज जिन्दगी को रखना चटक सुगंधित
गत माह का पुराना अखबार हो न जाये।
खोना न होश, दौड़े जिस घर में जा रहे हो
तुम्हें देख बन्द उसका कहीं द्वार हो न जाये।
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