बस आँख भर निहारो मसलो नहीं सुमन को
संगी बना न लेना बरसात के पवन को ।
वह ही तो है तुम्हारा उसके तो तुम नहीं हो
बेचैन कर रहा क्यों समझा दो अपने मन को ।
न नदी में बाँध बाँधो मर जायेगी बिचारी
कितनी विकल है धारा निज सिन्धु से मिलन को ।
तूँ पुकारता चला चल जंजीर खटखटाते
वे सहन न कर सकेंगे सचमुच तेरे रुदन को ।
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