साहित्य के अन्तर्गत कवि-समय का अध्ययन करते हुए अन्यान्य कवि समयों के साथ वृक्ष दोहद का जिक्र पढ़कर सहित्य की विराटता देखी। वृक्ष-दोहद का अर्थ वृक्षों में पुष्पोद्गम से है। यूँ तो दोहद का अर्थ गर्भवती की इच्छा है, पर वृक्ष के साथ इस दोहद का प्रयोग फूलों के उद्गम के अर्थ में ही किया जाता है। आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी  ने अपनी पुस्तक हिन्दी साहित्य की भूमिका में कवि-प्रसिद्धियों के अन्तर्गत वृक्ष-दोहद का सुन्दर विवेचन किया है। उन्होंने स्पष्ट किया है कि ’दोहद’ शब्द ’दौहृद’ शब्द का, प्राकृत रूप है जिसका अर्थ भी मिलता जुलता है। दोहद के सम्बन्ध में आश्चर्यजनक तथ्य यह है कि “कुशल व्यक्तियों द्वारा वृक्षों-लताओं आदि में जिन पदार्थों और क्रियाओं से असमय, अऋतु में ही फूलों का उदगम करा दिया जाता है, उसे दोहद कहते हैं।

यह वृक्ष दोहद मेरे लिये एक विचित्र चीज है। साहित्य और शिल्प में वर्णित, निर्मित यह वृक्ष-दोहद रोचक जान पड़ता है। संस्कृत काव्य में यथास्थान वृक्ष दोहदों का उल्लेख है। कालिदास के ग्रंथों, मल्लिनाथ के ग्रंथ, काव्य-मीमांसा व साहित्य दर्पण आदि शास्त्रीय ग्रंथों में इस वृक्ष दोहद का पर्याप्त उल्लेख है।

कवि प्रसिद्धियाँ

यूँ तो इन ग्रंथों में अशोक, बकुल, तिलक, कुरबक- इन चार ही वृक्षों से सम्बन्धित कवि-प्रसिद्धियाँ मिलती हैं, परन्तु अन्यत्र कुछ स्थानों पर कर्णिकार (अमलतास), चंपक (चंपा), नमेरु(सुरपुन्नाग), प्रियंगु, मंदार, आम आदि वृक्ष-पुष्पों के भी स्त्री-क्रियायों से उदगमित होने के उल्लेख हैं।

मेरी रुचि अचानक ही इन वृक्षों के सम्बन्ध में बहुत कुछ जानने की तरफ हो गयी, और अपने आस-पास इनमें से कुछ वृक्षों को देखकर मन कल्पनाजनित वही दृश्य देखने लगा जिनमें सुन्दरियों के पदाघात से अशोक के फूल खिल रहे हों,अमलतास स्त्रियों के नृत्य से पुष्पित हो रहा हो, स्त्रियों की गलबहियाँ से कुरबक हँस कर खिल गया हो, चंपा फूल गया हो स्त्रियों की हँसी से चहककर, गुनगुना रही हों स्त्रियाँ और विकसित हो गया हो नमेरु, छूने भर से विकसित हुआ हो प्रियंगु और कुछ कहने भर से स्त्रियों के फूल गया हो मंदार आदि-आदि। 

कवि समय

कवि समय का अर्थ है कवियों का आचार या सम्प्रदाय। इस शब्द का सबसे पहले प्रयोग राजशेखर ने किया। इसका मतलब है कि “यद्यपि देश, काल आदि के विरुद्ध विषयों का वर्णन करना कवित्व का दोष है, तथापि कवि परम्परा में वर्णित ऐसी बातें निर्दोष होती हैं। लोक और शास्त्र विरोधी वे ही बातें कवि समय के अन्तर्गत आती हैं जिन्हें प्राचीन काल के पंडित अनेकों ज्ञात-अज्ञात वेद-शास्त्रों का अवगाहन कर निश्चित कर गए हैं।”

इन वृक्षों और फूलों के सम्बन्ध में तलाशने निकला इस अन्तर्जाल पर। जो कुछ मिला वह इस कवि-समय से ताल्लुक तो नहीं रखता था, परन्तु काफी ज्ञानवर्द्धन करने के लिये पर्याप्त था। इन वृक्ष-पुष्पों के वानस्पतिक नामों की खोज ने तो और भी बहुत कुछ हाथ पकड़ा दिया। तो एक भाव मन में जागा। इन वृक्षों और पुष्पों को एक आत्मीय भाव से निरखते हुए इनकी परिचयात्मक चर्चा करूँ, यदि संभव हो तो शास्त्रीय और वैज्ञानिक सन्दर्भों के साथ।  सब कुछ इसी अन्तर्जाल और संकलित पुस्तकों की सामग्री का ही प्रस्तुतिकरण होगा- मेरा अपना कुछ नहीं।

क्रमशः