Capsule Poetry

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बचपन, यौवन, वृद्धपन (कविता)

By Himanshu Pandey

बचपन! तुम औत्सुक्य की अविराम यात्रा हो, पहचानते हो, ढूढ़ते हो रंग-बिरंगापन क्योंकि सब कुछ नया लगता है तुम्हें। यौवन!…

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