प्रेम पंथ ऐसो कठिन
प्रेम की अबूझ माधुरी निरन्तर प्रत्येक के अन्तस में बजती रहती है। अनेकों को विस्मित करती है, मुग्ध करती है…
प्रेम की अबूझ माधुरी निरन्तर प्रत्येक के अन्तस में बजती रहती है। अनेकों को विस्मित करती है, मुग्ध करती है…
व्यथित मत होकि तू किसी के बंधनों में है, अगर तू है हवातू सुगंधित है सुमन के सम्पुटों में बंद…
यूँ तो अनगिनत पुष्प-वृक्षों को मैंने जाना पहचाना नहीं, परन्तु वृक्ष दोहद के सन्दर्भ में कुरबक का नाम सुनकर मन…
स्वर्ण-पुष्प वृक्ष की याद क्यों न आये इस गर्मी में। कौन है ऐसा सिवाय इसके जो दुपहरी से उसकी कान्ति…
तुम्हें सोचता हूँ निरन्तर अचिन्त्य ही चिन्तन का भाव बन जाता हैठीक उसी तरह, जैसे, मूक की मोह से अंधी…
आशीष जी की पोस्ट पढ़कर टिप्पणी नियंत्रण का हरबा-हथियार (मॉडरेशन) हमने भी लगाया ही था कि पहली टिप्पणी अज्ञात साहब की…