बस आँख भर निहारो मसलो नहीं सुमन को
बस आँख भर निहारो मसलो नहीं सुमन कोसंगी बना न लेना बरसात के पवन को । वह ही तो है…
बस आँख भर निहारो मसलो नहीं सुमन कोसंगी बना न लेना बरसात के पवन को । वह ही तो है…
ब्लॉगवाणी का चिट्ठा संकलकों में एक प्रतिष्ठित स्थान है। ज्यादातर चिट्ठों के अनेकों पाठक इस संकलक के माध्यम से ही…
अज्ञेय की पंक्ति- “मैं अकेलापन चुनता नहीं हूँ, केवल स्वीकार करता हूँ”- मेरे निविड़तम एकान्त को एक अर्थ देती हैं।…
जैनू ! तुम्हें देखकर ’निराला का भिक्षुक’ कभी याद नहीं आता। पेट और पीठ दोनों साफ-साफ दीखते हैं तुम्हारे और…
अपने ऊबड़-खाबड़ दर्द की जमीन न जाने कितनी बार मैंने बनानी चाही एक चिकनी समतल सतह की भाँतिपर कभी सामर्थ्य…
बचपन से देवेन्द्र कुमार के इस गीत को गाता-गुनगुनाता आ रहा हूँ, तब से जब ऐसे ही कुछ गीत-कवितायें गाकर…