आओ चलो, दीप रखते हैं (कविता)
आओ चलो, दीप रखते हैं कविता जीवन के हर उस कोने…
Arattai – संदेश और संवाद माध्यमों का स्वदेशी संस्करण
आत्मनिर्भर भारत के गुंजित स्वर में प्रधानमंत्री के स्वदेशी अपनाने के…
आशीष त्रिपाठी का काव्य संग्रह शान्ति पर्व
शान्ति पर्व पढ़ गया। किसी पुस्तक को पढ़ कर चुपचाप मन…
नवागत प्रविष्टियाँ
कैसा भय ?
उसकी पत्नी ने साश्चर्य पूछा, “इस भयानक तूफ़ान में भी तुम्हें जरा भी डर नहीं लग रहा है!” सैनिक ने…
गोबर गणेशों की गोबर-गणेशता
पहले आती थी हाले दिल पे हंसीअब किसी बात पर नहीं आती। कैसे आए? मात्रा का प्रतिबन्ध है। दिल के…
सदैव सहमति में हिलते सिर
बहुत वर्षों पहले से एक बूढ़े पुरूष और स्त्री की आकृति के उन खिलौनों को देख रहा हूँ जिनके सर…
अँधेरी रात में दीपक जलाए कौन बैठा है?
बड़ी घनी तिमिरावृत रजनी है। शिशिर की शीतलता ने इस अँधेरी रात को अतिरिक्त सौम्यता दी है। सबकी पलकों को…
चाटुकारिता का धर्म-शास्त्र
आज का मनुष्य यह भली भाँति समझता है कि उसकी सफलता के मूल में वह सद्धर्म (चाटुकारिता) है, जिसे निभाकर…
किं कर्मं किं अकर्मं वा
प्रातः काल है। पलकें पसारे परिसर का झिलमिल आकाश और उसका विस्तार देख रहा हूँ। आकाश और धरती कुहासे की…
