पराजितों का उत्सव : एक आदिम सन्दर्भ (पानू खोलिया)-१
अपने नाटक ’करुणावतार बुद्ध’ की अगली कड़ी जानबूझ कर प्रस्तुत नहीं कर रहा । कारण, ब्लॉग-जगत का मौलिक गुण जो…
अपने नाटक ’करुणावतार बुद्ध’ की अगली कड़ी जानबूझ कर प्रस्तुत नहीं कर रहा । कारण, ब्लॉग-जगत का मौलिक गुण जो…
करुणावतार बुद्ध सारथी: भूपाल! नगरी तो ऐसी सजी-सँवरी थी, जैसे अमरावती ही वहाँ उतर आयी हो। सुन्दरियाँ नृत्य-गीत में रत…
करुणावतार बुद्ध: (द्वितीय दृश्य ) (सारथी प्रवेश करता है । प्रणाम की मुद्रा में सिर झुकाकर राजा की आज्ञा माँगता…
करुणावतार बुद्ध (प्रथम दृश्य ) (प्रातःकाल की बेला। महल में राजा और रानी चिन्तित मुद्रा में।) शुद्धोधन: सौभाग्यवती! कल…
कल की ना-ना तुम्हारी – मन सिहर गया, चित्त अस्थिर आगत के भय की धारणायें, कहीं उल्लास के दिन और…
“मुक्तिबोध की हर कविता एक आईना है- गोल, तिरछा, चौकोर, लम्बा आईना। उसमें चेहरा या चेहरे देखे जा सकते हैं ।…