आज देखा तुम्हें अन्तर के मधुरिल द्वीप पर ! निज रूपाकाश में मधुरिम प्रभात को पुष्पायित करती, हरसिंगार के कुहसिल फूल-सी, प्रणय-पर्व की मुग्ध कथा-सी बैठी थीं तुम ! अपने लुब्ध नयनों से ढाँक कर ताक रहा था तुम्हें !…