Category

सौन्दर्य-लहरी

सौन्दर्य लहरी संस्कृत के स्तोत्र-साहित्य का गौरव-ग्रंथ व अनुपम काव्योपलब्धि है। आचार्य शंकर की चमत्कृत करने वाली मेधा का दूसरा आयाम है यह काव्य। निर्गुण, निराकार अद्वैत ब्रह्म की आराधना करने वाले आचार्य ने शिव और शक्ति की सगुण रागात्मक लीला का विभोर गान किया है सौन्दर्य-लहरी में। इस ब्लॉग पर इस अनुपम काव्य का हिन्दी भावानुवाद क्रमशः प्रकाशित है।

Poetic Adaptation, Ramyantar, Translated Works, सौन्दर्य-लहरी

सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 95-102)

सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 95-102)

सौन्दर्य लहरी का हिन्दी काव्य रूपांतर स्वदेहोद्भूताभिर्घृणिभिरणिमाद्याभिरभितो,निषेवे नित्ये त्वामहमिति सदा भावयति यः।किमाश्चर्यं तस्य त्रिनयनसमृद्धिं तृणयतो,महासंवर्ताग्निविरचयति नीराजनविधिं ॥95॥स्वशरीरोद्भूत किरणसमूहअणिमादिक सुसेवितजो स्वरूप त्वदीय नितकरता निषेवितअहं भावितकौन सा आश्चर्यशंभुसमृद्धि वहसाधकशिरोमणितृणसदृश गिनताप्रलय का प्रज्ज्वलितपावक दहन भीअभय नीराजन बना लेतास्वरूपविलासिनी हे! समुद्भूतस्थूलस्तन भरमुरश्चारुहसितंकटाक्षे कन्दर्पाः कतिचन…

Poetic Adaptation, Ramyantar, Translated Works, सौन्दर्य-लहरी

सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 88-94)

सौन्दर्य लहरी का हिन्दी काव्य रूपांतर नखैर्नाकस्त्रीणां करकमलसङ्कोचशशिभिःतरूणां दिव्यानां हसत इव ते चण्डि चरणौ।फलानि स्वःस्थेभ्यः किसलय-कराग्रेण ददतांदरिद्रेभ्यो भद्रां श्रियमनिशमह्नाय ददतौ ॥88॥पद तुम्हारेनिज सुधाकर नख अवलि सेस्वर्गललना के सरोरुह पाणितल कोसंकुचित देते बना हैंचण्डि!तेरे चरणद्वयदेवेन्द्रवन स्थित कल्पतरु काभी सदा उपहास करते…

Poetic Adaptation, Ramyantar, Translated Works, सौन्दर्य-लहरी

सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 81-87)

सौन्दर्य लहरी का हिन्दी काव्य रूपांतर करीन्द्राणां शुण्डान् कनककदलीकाण्डपटली-मुभाभ्यामूरुभ्यामुभयमपि निर्जित्य भवति।सुवृत्ताभ्यां पत्युः प्रणतिकठिनाभ्यां गिरिसुतेविधिज्ञे जानुभ्यां विबुधकरिकुम्भद्वयमसि॥81॥करिवरों के शुण्ड कोकंचन कदलि के खंभ द्वय कोकर दिया करतीं पराजित युगल जंघायें तुम्हारीजानुजो पति को प्रणति करतेसुवृत्त हुए कठिन हैंजीतती उनसेविवुध करि कुम्भ द्वयहे…

Poetic Adaptation, Ramyantar, Translated Works, सौन्दर्य-लहरी

सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 76-80)

सौन्दर्य लहरी का हिन्दी काव्य रूपांतर यदेतत्कालिन्दी तनुतरतरंगाकृति शिवेकृशे मध्ये किंचिज्जननि तव यद्भाति सुधियाम्विमर्दादन्योन्यं कुचकलशयोरन्तरगतं तनूभूतं व्योम प्रविशदिव नाभिं कुहरिणीम्॥76॥ यमुन लहरी सदृश नीलीसूक्ष्म अति तनु वस्तु कोईप्रान्त कृश तव मध्य मेंप्रतिभात होती सुधि जनों कोकुच कलश के बीच में पिसता…

Poetic Adaptation, Ramyantar, Translated Works, सौन्दर्य-लहरी

सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 71-75)

सौन्दर्य लहरी का हिन्दी काव्यानुवाद समं देवि स्कन्दद्विपवदनपीतं स्तनयुगं तवेदं नः खेदं हरतु सततं प्रस्नुतमुखम्।यदालोक्याशंकाकुलितहृदयो हासजनकःस्वकुम्भौ हेरम्बः परिमृशति हस्तेन झटिति॥71॥ संग हीयुग तनयषडमुख गजवदनपय स्रवित तेरे कुच युगल का पान करतेजान जिनको भाल ही निजगणाधिप शंकितस्वशिर परफेर अपना शुण्डतुमको हैं बना…

Poetic Adaptation, Ramyantar, Translated Works, सौन्दर्य-लहरी

सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 66-70)

सौन्दर्य लहरी का हिन्दी काव्यानुवाद कराग्रेण स्पृष्टं तुहिनगिरिणा वत्सलतयागिरीशेनोदस्तं मुहुरधरपानाकुलतया करग्राह्यं शंभोर्मुखमुकुरवृन्तं गिरिसुते कथंकारं ब्रूमस्तव चुबुकमौपम्यरहितम्॥66॥ पाणि सेवात्सल्यवशजिसको दुलारा हिमशिखर नेअधरपानाकुलितजिसकोकिया स्पर्शित चन्द्रधर नेमुख मुकुर के वृन्त समपकड़ा जिसे सविलास शिव नेकौन वर्णन कर सकेगाउस अमोलकचिबुक का फिरसत्य ही हैं ललित अनुपमचिबुक…

Poetic Adaptation, Ramyantar, Translated Works, सौन्दर्य-लहरी

सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 61-65)

सौन्दर्य लहरी का हिन्दी काव्यानुवाद प्रकृत्या‌‌ऽऽरक्तायास्तव सुदति दंतच्छदरुचेःप्रवक्ष्ये सादृश्यं जनयतु फलं विद्रुमलतान बिबं तद्बिबं प्रतिफलन रागादरुणितंतुलामध्यारोढुं कथमिव विलज्जते कलया ॥६१॥सुभग स्वाभाविक अरुणिमाधरतुम्हारे अधर पल्लवकौन ऐसा है तुलित होजो अधर की अरुणिमा सेफल जनन से हीनसमता है कहाँ विद्रुमलता कीरंचमात्र कला…

Poetic Adaptation, Ramyantar, Translated Works, सौन्दर्य-लहरी

सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 56-60)

सौन्दर्य लहरी का हिन्दी काव्य रूपांतर दृशा द्राघीयस्या दरदलितनीलोत्पलरुचादवीयांसं दीनं स्नपय कृपया मामपि शिवेअनेनायं धन्यो भवति न च ते  हानिरियतावने वा हर्म्ये वा समकर निपातो हिमकरः ॥५६॥दूरदृष्टि मनोहरा तवनील कंजदलाभिरामासींच दे मुझ दीन को भी सदय निज करुणा सलिल सेअहहः…

Poetic Adaptation, Ramyantar, Translated Works, सौन्दर्य-लहरी

सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 51-55)

सौन्दर्य लहरी का हिन्दी काव्यानुवाद   गते कर्णाभ्यर्णं गरुत एव पक्ष्माणि दधतीपुरां भेत्तुश्चित्तप्रशमरसविद्रावणफले इमे नेत्रे गोत्राधरपतिकुलोत्तंस कलिकेतवाकर्णाकृष्ट स्मरशरविलासं कलयतः ॥५१॥जो कर्णान्तदीर्घ विशाल तेरे युगल दृग अभिरामपलक सायकयुक्तउनको खींच कर अपने श्रवण तकमन्मथ किया करता बाण का संधान तीव्र अचूक सपदि जिससे…

Poetic Adaptation, Ramyantar, Translated Works, सौन्दर्य-लहरी

सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 46-50)

सौन्दर्य लहरी का हिन्दी काव्यानुवाद भ्रुवौ भुग्ने किं चिद्‌भुवनभयभंगव्यसनिनित्वदीये नेत्राभ्यां मधुकररुचिभ्यां धृतगुणम्‌ ॥धनुर्मन्ये सव्येतरकरगृहीतं रतिपतेःप्रकोष्ठे मुष्टौ च स्थगयति निगूढान्तरमुमे ॥४६॥कुटिल भृकुटि युगल नयन कीओ भुवनभयहारिणी हे!तुल्यताधृत ज्यों शरासनसुसज्जित मधुकरमयी अभिराम प्रत्यंचा जहाँ हैवाम करतल में स्वयं  धारण किएजिसको मदन हैभ्रू…