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Essays

Article | आलेख, Essays, आलेख

आया है प्रिय ऋतुराज …

“वसंत एक दूत है विराम जानता नहीं, संदेश प्राण के सुना गया किसे पता नहीं । पिकी पुकारती रही पुकारते धरा गगन, मगर कभी रुके नहीं वसंत के चपल चरण ।” वसंत प्रकृति का एक अनोखा उपहार है । आधी…

Contemplation, Essays, चिंतन

मैं क्या हूँ?

अपनी कस्बाई संस्कृति में हर शाम बिजली न आने तक छत पर लेटता हूँ। अपने इस लघु जीवन की एकरस-चर्या में आकाश देख ही नहीं पाता शायद अवकाश लेकर। और फिर आकाश को भी खिड़कियों से क्या देखना। तो शाम…

Contemplation, Essays, चिंतन

मन का चैन

मन का चैन है जिसके लिये खूब तैयारी करता हूँ। कुछ पाने, न पाने की बेचैनी, जीवन की शान्ति और अन्तर्भूत आनन्द को पाने की छटपटाहट में कई बार मन उद्विग्न हो जाया करता है। अपना आन्तर जीवन तनाव और…

Essays, General Articles

प्रथम-पुरुष की खोज

(Photo credit: Wikipedia) हमारे आर्य-साहित्य का जो ‘प्रथम पुरुष’ है, अंग्रेजी का ‘थर्ड पर्सन’ (Third Person), मैं उसकी तलाश में निकला हूँ। वह परम-पुरुष भी ‘सः’ ही है, ‘अहं’ या ‘त्वं’ नहीं। वर्तमान में देख रहा हूँ, फ़िजा ‘मत’ के…

Contemplation, Essays

तुम भी उबर गये पथरीली राह से

तुम अब कालेज कभी नहीं आओगे। तुम अब इस सड़क, उस नुक्कड़, वहाँ की दुकान पर भी नहीं दिखोगे। तुम छोड़ कर यह भीड़ कहीं गहरे एकान्त में चले गये हो। पता नहीं वह सुदूर क्षेत्र कैसा है? अन्धकारमय या…

Article | आलेख, Essays, Politics

उस समाज पर गाज गिरे जिसके तुम नायक

एक पार्टी का झंडा लिये एक भीड़ मैदान से गुजरी है। अपनी पड़ोस का कुम्हार उसी में उचक रहा है। बी0ए0 प्रथम वर्ष की छात्र पंजिका में रजिस्टर्ड बच्चे उत्सुकता से हुजूम देख रहे हैं। पास ही लकड़ी की दुकान…

Contemplation, Essays

कर स्वयं हर गीत का शृंगार

दूसरों के अनुभव जान लेना भी व्यक्ति के लिये अनुभव है। कल एक अनुभवी आप्त पुरुष से चर्चा चली। सामने रामावतार त्यागी का एक गीत था। प्रश्न था- वास्तविकता है क्या? “वस्तुतः, तत्वतः, यथार्थः अपने को जान लेना ही अध्यात्म…

Contemplation, Essays, चिंतन

कैसे मुक्ति हो?

कैसे मुक्ति हो? बंधन और मोक्ष कहीं आकाश से नहीं टपकते। वे हमारे स्वयं के ही सृजन हैं। देखता हूं जिन्दगी भी क्या रहस्य है। जब से जीवन मिला है आदमी को, तब से एक अज्ञात क्रियाशीलता उसे नचाये जा…

Contemplation, Essays, चिंतन

रास्ते बन्द नहीं सोचने वालों के लिए

कविता की दुनिया में रचने-बसने का मन करता है। समय के तकाजे की बात चाहे जो हो, लेकिन पाता हूं कि समय का सिन्धु-तरण साहित्य के जलयान से हो जाता है। साहित्य की जड़ सामाजिक विरासत लिये होती है। शब्दों…