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  • ब्रश करती तुम्हारी अंगुलियाँ (कविता)

    ब्रश करती तुम्हारी अंगुलियाँ (कविता)

    कितना सुंदर हैब्रश करती तुम्हारी अंगुलियों का कांपनाकभी सीधे,कभी ऊपर-नीचेकभी धीमी कभी तेज गति सेजैसे थिरकता है मुसाफिरकिसी पहाड़ी राह पर।  कितना अनोखा है वह… >>

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‘आशावाद परो भव’। अंधेरे में फ़ंस कर कीमती जिन्दगी को बर्बाद करना बड़ी मूर्खता है। अँधेरा एक रात का मेहमान होता है। फ़िर चमकता सवेरा हाजिर हो जाता है। पतझर के बाद बसंत आता ही है। इसलिये बसंत के पाँवों की आहट जरूर सुननी चाहिये। हमारा अधैर्य हमारी परेशानी है। निराशा का कुहासा फ़टेगा। सूर्य पीछे ही तो बैठा है।