वैवाहिक सप्तपदी: वर वचन हौं गृह-ग्राम रहौं जब लौं तब लौं ही तू साज सिंगार सजौगी।भाँतिन-भाँति के हास-विलास कुतूहल क्रीड़ा में राग रचौगी।पै न रहूँ घर तो न अभूषण पेन्होगी तूँ परधाम रहोगी।प्रानप्रिये ये करो प्रन तूँ हमरी पहली बतिया…