Geetanjali: Tagore
strike, strike at the root of penury in
my heart.
Give me the strength lightly to bear
my joys and sorrows.
Give me the strength to make my
love fruitful in service.
Give me the strength never to disown
the poor or bend my knees before
insolent might.
Give me the strength to raise my
mind high above daily trifles.
हिन्दी भावानुवाद: पंकिल
है महाराज प्रार्थना यही।
तुम बारंबार प्रहार करो रह न जाय न उर दीनता कहीं॥
जड़ से मिट जाय दैन्य उर का निज बल दो कर अपने सम्मुख
मैं नाथ सहजता से झेलूँ अपने जीवन के सब सुख-दुख-
दो शक्ति हमारी प्रीति फलवती हो सेवा सरि बीच बही॥
दो शक्ति न दीनों को सुदूर मैं नाथ पराया कह फेकूँ
या धृष्टों के बल के सम्मुख स्वामी अपना घुटना टेकूँ-
बल दो मेरा उन्नत माथा हो विनत तुच्छता बीच नहीं॥
दो बल अपनी इच्छाओं में बस तेरी ही इच्छा भर दूँ
अपना सब बल तेरे चरणों पर प्रेम सहित अर्पित कर दूँ-
पंकिल प्रियतम हर लो उर की सब दुर्बलतायें रही सही॥
गीतांजलि के अन्य भावानुवाद
एक, दो, तीन, चार, पाँच, छः, सात, आठ, नौ, दस, ग्यारह, बारह, तेरह, चौदह, पन्द्रह, सोलह, सत्रह, अट्ठारह, उन्नीस, बीस, इक्कीस, बाइस, तेईस, चौबीस, पच्चीस, छब्बीस, सत्ताइस, अट्ठाईस, उन्तीस, तीस, इकतीस, बत्तीस, तैतीस, चौतीस, पैंतीस, छत्तीस।