सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 81-87)
सौन्दर्य लहरी का हिन्दी काव्य रूपांतर करीन्द्राणां शुण्डान् कनककदलीकाण्डपटली-मुभाभ्यामूरुभ्यामुभयमपि निर्जित्य भवति।सुवृत्ताभ्यां पत्युः प्रणतिकठिनाभ्यां गिरिसुतेविधिज्ञे जानुभ्यां विबुधकरिकुम्भद्वयमसि॥81॥करिवरों के शुण्ड कोकंचन कदलि के खंभ द्वय कोकर दिया करतीं पराजित युगल जंघायें तुम्हारीजानुजो पति को प्रणति करतेसुवृत्त हुए कठिन हैंजीतती उनसेविवुध करि कुम्भ द्वयहे…