महान संत, योगी एवं नाथ संप्रदाय के संस्थापक गुरु गोरखनाथ की गोरखबानी में गुरु की महिमा एवं गुरु-शिष्य के संबंधों पर विशेष उल्लेख है। गोरखबानी या गोरखवाणी गुरु गोरखनाथ द्वारा रचित भक्ति कविताओं और उपदेशों का संग्रह है। इस संग्रह में गुरु गोरखनाथ के उपदेश, आध्यात्मिक दृष्टिकोण और योग साधना के महत्व को अभिव्यक्त किया गया है। यह उपदेश तात्कालिक सहज भाषा में कहे गये हैं जिससे यह जनसामान्य में सहजता से ग्राह्य हुए।

गुरु के बिना गोरखनाथ स्वयं को अकेला अनुभव कर रहे हैं। गुरु का प्रत्येक अनुभव उन्हें स्मरण हो रहा है, वह बेचैन हैं। गुरु की उपस्थिति ही उन्हें सहज और संतुष्ट कर सकती है। वह गुरु के कहे गये वचन याद कर रहे हैं और उनकी गूढ़ता एवं अर्थ-गंभीरता से मुग्ध हैं। गुरु के वचन कितने अर्थयुक्त एवं रहस्यमय हैं कि गोरखनाथ अपनी नींद ही गँवा बैठे हैं-

मेरा गुरु तीन छंद गावै
ना जाणौ गुरु कहाँ गैला, मुझ नींदणी न आवै।

गोरखनाथ

इसका मतलब है, ‘मेरा गुरु तीन छंद गाता है। अर्थात् एक ही बात को तीन तरह से कहता है। मुझे पता नहीं, मेरा गुरु कहाँ चला गया? उसके बिना मुझे नींद नहीं आ रही है।’ गुरु की अनुपस्थिति में गुरु की बताई अनेक बातें उन्हें याद आ रही हैं।

गोरखनाथ का गुरु स्मरण: सतगुरु ही पार लगाएगा

गोरखनाथ अपने गुरु द्वारा दी गई शिक्षाओं के प्रति विनम्र हैं, उन्हें सब समझाए हुए आप्त वचन स्मरण में आ रहे हैं। माया का निराला खेल उन्हें समझ में आ रहा है। माया कैसे प्रकट सत्य को भी भाँति-भाँति के उपकरणों में उलझाकर मनुष्य से गोपन रखती है, गोरखनाथ यह जान गये हैं। सतगुरु ही है जो इस माया का खेल समझा सकता है, उसके गोपन रहस्यों का उद्घाटन कर सकता है। माया का खेल तो देखो।

कुम्हरा के घर हांडी आछे अहीरा के घरि सांडी।
बह्मना के घरि रान्डी आछे रान्डी सांडी हांडी।
राजा के घर सेल आछे जंगल मंधे बेल।
तेली के घर तेल आछे तेल बेल सेल।
अहीरा के घर महकी आछे देवल मध्ये ल्यंग।
हाटी मध्ये हींग आछे हींग ल्यंग स्यंग।
एक सुन्ने नाना वणयां बहु भांति दिखलावे।
भणत गोरष त्रिगुंण माया सतगुर होइ लषावे।
Guru Gorakhnath

उपरोक्त रचना में गोरखनाथ माया की लीला समझाते हैं। माया किस प्रकार भिन्न भिन्न दिखाई देने वाली हर सत्ता में व्यक्त हो रही है, उसके लिए वह रोचक एकरूपता ढूँढते है। वह कहते हैं कि माया कुम्हार के घर में ‘हांडी’, अहीर के घर में ‘सांडी’ अर्थात् मलाई और ब्राह्मण के घर उसकी स्त्री (राँडी या रानी) के रूप में है। इस प्रकार रांडी, सांडी और हांडी एक ही चीज है। ठीक वैसे ही वह राजा के घर में ‘सेल’ अर्थात् (शासन की छड़ी), जंगल में ‘बेल’ (लता) और तेली के घर में ‘तेल’ के रूप में है, और अलग अलग होते ही भी एक ही चीज है।

इसी तरह अहीर के घर में ‘दही/मट्ठे’ के रूप में, देवस्थान अथवा मंदिर में ‘लिंग’ तथा बाज़ार में ‘हींग’ के रूप में व्याप्त है। यह माया एक ही है, परंतु भिन्न भिन्न स्थानों में, भिन्न भिन्न रूपों में विभिन्न कार्य-व्यापार में व्यक्त हो रही है। गोरखनाथ के अनुसार एक ही सत्य विभिन्न रूपों में प्रकट होता है और त्रिगुण (सत्त्व, रजस, और तमस) से युक्त माया को केवल सतगुरु के मार्गदर्शन से ही पार किया जा सकता है।