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शैलबाला शतक

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भोजपुरी भाषा में जगतजननी माँ शैलबाला का स्तवन-वन्दन-आत्मनिवेदन और समर्पण है यह रचना। कहीं कोई बनावट नहीं, कोई सजावट नहीं, कोई दिखावट नहीं, बस अपनी माई के चरणों में सहज प्रणति के छन्द हैं यह। शैलबाला शतक के छन्द पराम्बा के चरणों में अर्पित स्तवक हैं। यह छन्द विगलित अन्तर के ऐकान्तिक उच्छ्वास हैं। इनकी भाव भूमिका अनमिल है, अनगढ़ है, अप्रत्याशित है। भोजपुरी भाषा के इच्छुरस का सोंधा पाक हैं यह छन्द। इस रचना में भोजपुरी की लोच में, नमनीयता में सहज ही ओज-प्रासाद गुम्फित हो गया है। लोकभाषा की ’लोकवन्द्य’ शक्ति का परिचय देते हैं यह छन्द।

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