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कजरी

Ramyantar

आज मिललैं श्याम सावनी विहान में (कजरी 3)

नाग-पंचमी की शुभकामनाओं सहित कजरी की इस प्रस्तुति के साथ यह कजरी-श्रृंखला समाप्त कर रहा हूँ – आज मिललैं श्याम सावनी विहान मेंमाधवी लतान में ना ! नियरे कनखी से बोलवलैंसिर पै पीत-पट ओढ़वलैं,रस के बतिया कहलैं सटके सखी कान…

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बड़ा लागै नीक सखी ना ..(कजरी 2)

श्याम हसलैं बोललैं बइठ के नजदीक सखीबड़ा लागै नीक सखी ना ॥ चमकै लिलरा जस अँजोरियादमकै बिजुरी अस दँतुरिया,मोहे अधरन कि लाल लाल लीक सखीबड़ा लागै नीक सखी ना । बड़री अँखिया कै पुतरियामुख पै लटके लट लटुरिया,जइसे धाये मधु…

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बीतल जात सवनवाँ ना …(कजरी – 1)

सावन आया । आकर जा भी रहा है । मैंने कजरी नहीं सुनी, न गायी । वह रिमझिम बारिश ही नहीं हुई जो ललचाती । उन पुराने दिनों की मोहक याद ही थी जो बारिश की जगह पूरे सावन बरसती…