नाग-पंचमी की शुभकामनाओं सहित कजरी की इस प्रस्तुति के साथ यह कजरी-श्रृंखला समाप्त कर रहा हूँ –
आज मिललैं श्याम सावनी विहान में
माधवी लतान में ना !
नियरे कनखी से बोलवलैं
सिर पै पीत-पट ओढ़वलैं,
रस के बतिया कहलैं सटके सखी कान में
माधवी लतान में ना !
बोलैं मधुर-मधुर बयना
मोहै तरुन अरुन नयना,
जइसे कमल खिलल पुरनिमा के चान में
माधवी लतान में ना !
गर में डार दिहलैं बाँहि
नाहिं निकसै मुँह से नाहिं,
कहली फिर मिलबै जमुना नहान में
माधवी लतान में ना !
जाने कइलैं कवन टोना
आलि नन्द जी कै छौना,
गजब जादू रहल बाँसुरी की तान में
माधवी लतान में ना !
दिहली सरवसै लुटाय
अबहीं जिभिया लाल बाय,
उनके रस-पंकिल अधचभले पान में
माधवी लतान में ना !
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लतान में – लताओं में ; नियरे – पास ; बयना – वचन; पुरनिमा – पूर्णिमा;
चान – चाँद; सरवसै – सर्वस्व; अधचभले – आधा चबाया हुआ ;
ई बताव कि भौजी के साथे झुलुवा झुलल की ना।
खाली कजरी लिखमे से का होई?
योद्धा और रसिया कृष्ण का नारियों जैसा शरीर दिखाना मुझे नहीं जँचता। ऐसी पेंटिंग क्यों नहीं बन सकती जिसमें उनका रसिया पौरुष झलके?
कजरी नें तो मन मोह लिया.
bahut sundar
सुंदर कजरी!
अच्छी लगी कजरी।
are kul maja aso e bhagavan bigar dehan n ho.
kajari t hilay dehlas
खुबसुरत अन्दाजे बयाँ कजरी का ।
नाग-पंचमी की शुभकामना-मौका लगे तो बीच बीच में और सुनवाईयेगा.
कुछ सुनाने का प्रबंध करवाइये ना, हिमांशु जी!
हिमांशु जी!
बहुत सुन्दर कजरी प्रस्तुत की है।
बधाई।
बहुत सुन्दर !
जाने कइलैं कवन टोना
आलि नन्द जी कै छौना,
गजब जादू रहल बाँसुरी की तान में
माधवी लतान में ना !
बहुत बढ़िया !!