सौन्दर्य लहरी (छन्द संख्या 71-75)
सौन्दर्य लहरी का हिन्दी काव्यानुवाद समं देवि स्कन्दद्विपवदनपीतं स्तनयुगं तवेदं नः खेदं हरतु सततं प्रस्नुतमुखम्।यदालोक्याशंकाकुलितहृदयो हासजनकःस्वकुम्भौ हेरम्बः परिमृशति हस्तेन झटिति॥71॥ संग हीयुग तनयषडमुख गजवदनपय स्रवित तेरे कुच युगल का पान करतेजान जिनको भाल ही निजगणाधिप शंकितस्वशिर परफेर अपना शुण्डतुमको हैं बना…