नीरवता के सांध्य शिविर में आकुलता के गहन रूप में उर में बस जाया करते हो ।…
यह कविता तब लिखी थी जब हिन्दी कविता से तुंरत का परिचय हुआ था । स्नातक कक्षा…
तुम बैठे रहते हो मेरे पास और टकटकी लगाए देखते रहते हो मुझे, अपने अधर किसलय के…
तुम्हें नहीं पता कितनी देर से तुम्हारी राह देख रहा हूँ । तुमने कहा था आने के…
मैं देखना चाहता हूँ तुम्हें हर सुबह कि मेरा दिन बीते कुछ अच्छी तरह, कि मेरे कल्पना…
बहुत पहले जब अपने को तलाश रहा था एक कविता लिखी थी- कुछ रूमानी- कसक और घबराहट…