A Close Capture of Hand-written Love-Letters |
स्नातक कक्षा में पढ़ते हुए कई किस्म के प्रेम पत्र पढ़े। केवल अपने ही नहीं, दूसरों के भी। अपनी इच्छा से नहीं, दूसरों की इच्छा से। उनमें से कुछ ऐसे थे जिन्होंने बहुत भीतर तक अपनी पैठ बना ली। उस भाव को स्थाई प्रतीति देने के लिए मैंने उनके काव्यानुवाद का यत्न किया। पत्र दस या ग्यारह की संख्या में थे। मैंने क्रमशः उनका काव्यानुवाद कर दिया। यहाँ ये अनुवाद लिखना उन पत्रों के गोपन भावों के प्रकाशन का निंदा योग्य प्रयास न माना जाय। हृदय की गहरी अनुभूतियों से उपजी ये अभिव्यक्तियाँ मुझ जैसे कई लोगों की मनोवृत्तियों की वाहिका हैं। इन पत्रों की पढ़न को प्रेमी हृदयों के लिए साधु भाव माना जाय, ऐसी प्रार्थना है। मैं क्रमशः कुछ निश्चित अंतराल पर इन काव्य-पत्रों को लिखूंगा, भावित हृदय की अपेक्षा के साथ –
बहुत बढीया लाईन है
“मेरे चिंतन के तार सो गए, अथ-इति दोनों एक हो गए”
बहुत अच्छा लगा पढ के।
अरे प्रेम पत्र ? वाह….
बहुत सुन्दर लगी आप की कविता
धन्यवाद
wah bhai
badhai
आह..!
हिमांशु जी आपका ये अवतार तो अछूता ही था मुझसे अब तक।
अद्भुत रचना..
धीरे-धीरे कर सारे पढ़ता हूँ।
मामला वनसाइडेड ही रहा होगा या फिर … वियोग-वाणी में
अथ-इति की ऐसी ही स्थिति बनती है … आभार ,,,