मैं देखना चाहता हूँ
तुम्हें हर सुबह
कि मेरा दिन बीते कुछ अच्छी तरह,
कि मेरे कल्पना लोक की
साम्राज्ञी बनो तुम,कि आतुरता का विहग
तुम्हारी स्मृति का विहान देख उड़ चले,
कि मेरा विरह-कातर हृदय
तुम्हारे दर्शन मात्र से
एक उर्जस्वित चेतना से आप्लावित हो सके,
कि जीवन के प्रति
मेरी नास्तिकता
तुम्हारे प्रति आस्तिकता में परिणत हो जाय,
कि मेरा मनस्ताप
जल कर राख हो जाय
तुम्हारे नेत्रों की एक ज्योति से केवल,
कि अभिमंत्रित जल की भांति
तुम्हारी मुस्कान
नष्ट कर दे
मेरे कष्टों के सारे आडम्बर,
कि नाचूँ मैं-अहोभाव है नाच
कि गाऊं मैं-प्रिय स्वभाव है गान
और तुम्हारी प्रीति के लिए
हो जाऊं समर्पित ।
वस्तुतः अखिल शान्ति है तुम्हारा ध्यान।
तब तो हो ही जायेगा अखिलं मधुरं……..