कितना सुंदर हैब्रश करती तुम्हारी अंगुलियों का कांपनाकभी सीधे,कभी ऊपर-नीचेकभी धीमी कभी तेज गति सेजैसे थिरकता है…
Sarracenia © Karen Hall प्रणय-पीयूष-घट हूँ मैं। आँख भर तड़ित-नर्तन देखता मेघ-गर्जन कान भर सुनता हुआ …
तरुणाई क्या फिर आनी है ! चलो, आओ ! झूम गाओ प्रीति के सौरभ भरे स्वर गुनगुनाओ…
तुम आते थे मेरे हृदय की तलहटी में मेरे संवेदना के रहस्य-लोक में मैं निरखता था- मेरे…
तुमने अपने हृदय में जो अनन्त वेदनासमो ली हैऔर उस वेदना को हीअपनी अमूल्य सम्पत्ति समझउसे पोषित…
मैं, मैं अब नहीं रहा, तुम ही तो हूँ। बहुत भटकता रहा खोजताअपने हृदय चिरंतन तुमकोजो हर…