मैं, मैं अब नहीं रहा, तुम ही तो हूँ।
बहुत भटकता रहा खोजता
अपने हृदय चिरंतन तुमको
जो हर क्षण आछन्न रहे
ओ साँसों के चिर बंधन तुमको,
मैं जाग्रत अब नहीं रहा, गुम ही तो हूँ।
मैं, मैं अब नहीं रहा, तुम ही तो हूँ।
इस जीवन के कठिन समर में
तुम संबल बन कर आए हो
दुःख की ऐसी विकट धूप में
सुख-छाया बन कर छाये हो,
मैं ना कुछ भी विषम रहा, सम ही तो हूँ।
मैं, मैं अब नहीं रहा, तुम ही तो हूँ।
मैं अभी भी खड़ा हूँ (कविता)
सुखद अनुभूति हुई पढ़कर
वाह बहुत अच्छी कविता ! शाबाश !!
बहुत सुन्दर उद्गार ! प्रेम कुछ ऐसा ही होता है। फिर भी, अपना स्व ही यदि खो गया तो प्रेमी प्रेम किसे करेगा? अतः यह स्व बचाए रखना आवश्यक है।
घुघूती बासूती
beautiful creation.. pyar wahi hai jisme ‘aham’ na ho..
सुन्दर–बहुत बढ़िया.
बहुत बढ़िया………
मैं ना कुछ भी विषम रहा, सम ही तो हूँ।
मैं, मैं अब नहीं रहा, तुम ही तो हूँ ।
bahut accha likha aapne