Sarracenia © Karen Hall प्रणय-पीयूष-घट हूँ मैं। आँख भर तड़ित-नर्तन देखता मेघ-गर्जन कान भर सुनता हुआ …
तुम को क्या हो गया आज तुम इतने व्याकुल हो मेरे मन व्यक्त कर सकेगी क्या वाणी…
‘मोहरे वही, बिसात भी वही और खिलाड़ी भी…/ यह कैसे हुआ मीत /….’ बहुत पहले सुना था…
तुम क्यों उड़ जाते काग नहीं ! व्याकुल चारा बाँटते प्रकट क्यों कर पाते अनुराग नहीं ।…