जग चाहे किसी महल में अपने वैभव पर इतराएया फिर कोई स्वयं सिद्ध बन अपनी अपनी गाएमौन…
१. (राग केदार) पकरि बस कीने री नँदलाल। काजर दियौ खिलार राधिका, मुख सों मसलि गुलाल॥ चपल…
होली में कुछ मेरी भी सुन। मन, मत अपने में ही जल भुन ।। जब शोभित नर्तित…
मुझे वहीं ले चलो मदिर मन जहाँ दिवानों की मस्त टोली होली, होली, होली। कभी भंग मे,…
सखि ऊ दिन अब कब अइहैं, पिया संग खेलब होरी । बिसरत नाहिं सखी मन बसिया केसर…
आचारज जी का आह्वान सुन लपके ही थे कि तिमिरान्ध हो गये (यूँ फगुनान्ध होने को बुलाये…