(१)
ठौर-ठौर ब्लॉगन पै चुहल हुई फागुन की
बहक-बहक ब्लॉग-भूप कुछ भी कह जायौ है।
गावै राग रागन अस कूट-शब्द-ओट होइ
भाव-रस बिमुख शब्द-कौतुक छा जायौ है॥
रूप-भाव भाव-रूप-भेद ऐसे हिय बैठे
फागुन कौ रंग हाव-हाव में समायौ है।
रीझि औरि खीझि दोउ प्रकटीं हिय साथ-साथ
फागुन यह ’बाउ’ के भागन तें आयौ है॥
(२)
फागुन मतवारो यह ऐसो परपंच रच्यौ,
आतुरी मची जो चित्त चातुरी हेराई है।
अन्तर-अभिलाष बहकि आई इन बैनन में,
खोरि-खोरि दौरि कहत फागुन ऋतु आई है॥
जोई मुँह आवत सो बिबस बयात सबै,
कोई रिसियात जबैं, होरि की दोहाई है।
सखि कै सुरंग-रंग-अंग कौ रंगैंगे आज,
देखो इन बृद्धन पै छाई तरुणाई है॥
Credit: Flickr
वाह वाह वाह….आनंद आ गया….
लाजवाब फागुनी रंग में बाँधा है आपने कथ्य को…सीधे ब्रज की गलियों में ले गए…वाह..
का भईया ! आय ही गये कछारा मार के फागुन मा ।
जय हो ..!
गजब का तड़का मारा है..!
दुहाई सरकार की..!
जमाय ही दियो ब्लाग-फाग..!
देखो इन बृद्धन पै छाई लरिकाई है….ha ha ha ha
मुझे पूरी प्रविष्टि में एक ही लाइन समझ आई ….पंच लाइन ….
सौ सुनार की एक लुहार की ….कहना ही पड़ेगा देखन में छोटे लगे घाव करे गंभीर …
मस्त….!!
देखो इन बृद्धन पै छाई लरिकाई है ॥-संशोधित हूजिये हुजूर -छाई लरिकाई नही छाई तरुणाई है .
फागुन यह ’बाउ’ के भागन तें आयौ है- बाऊ के भागन की बदौलत औरों ने भी अपुन भाग चमकाई है .
आपकी कविताई ने पद्माकर की याद दिला दी -बनन में बागन में बगरयो बसंत है !
हेम-खंड हैं प्रचंड क्या चपत लगाई है
बुढवन के घात-बात पे बूढा बताई है
रीस-खीस में भी बीस हिमांशु दिसै हैं आज
छोटी सी हिम-खंड टैटानिक डूबाई है…
हा हा हा हा ….
बहुत बढ़िया हिमांशु जी…देर आये दुरुस्त आये….
हेम-खंड हैं प्रचंड क्या चपत लगाई है
बुढवन के घात-बात पे बूढा बताई है
रीस-खीस में भी बीस हिमांशु दिसै हैं आज
छोटी सी हिम-खंड टैटानिक डूबाई है…
हा हा हा हा ….
बहुत बढ़िया हिमांशु जी…देर आये दुरुस्त आये….
,फागुन में सभी जवान हैं ,बूढा कौन?
आपकी इन रचनाओं से फागोत्सव का आनंद छाने लगा है. बहुत बढ़िया.
हिमांसु भाई !
.. लिया हमहूँ कुछ लिख दी .. नहीं तौ सब कहिहहिं कि
हम फिसड्डी अहन …
जवन हीला – हवाला हुवै का रहा , ऊ होइ चुका —
.
'' फागुन कै हेतु है कि अकिल खोय-खोय जाय 🙂
बंजर मा भी मदन-मुखी क s बोय-बोय जाय 🙂
अस अंधई चढ़इ दिलो – दिमाग पै , ह.म.श. !
काँटन कै सेज हुवै , तबौ सोय – सोय जाय :):) ''
.
@ ''गावै राग रागन अस कूट-शब्द-ओट होइ
भाव-रस बिमुख शब्द-कौतुक छा जायौ है ''
————- अरे तुमहूँ पै ''आचाराजहा – फरमान '' जारी होइ जाये ! तब का करबो ?
ई बात का सिरफ हम – तू के अलावा के समझी !/?
@रीझि औरि खीझि दोउ प्रकटीं हिय साथ-साथ —
……………. सौ टेक कै बात ! हमहूँ का नाहीं छोडेउ ! ….. नीक लाग हो ! मजा आई गा !
@ सखि कै सुरंग-रंग-अंग कौ रंगैंगे आज,
देखो इन बृद्धन पै छाई लरिकाई है ……….
————– वाह '' लला फिर आइयो खेलन होरी '' ! अनंत-फगुन-आभार !
बहुत अच्छा फगुआ। सही में यह पंच लाइन है ..
सखि कै सुरंग-रंग-अंग कौ रंगैंगे आज,
देखो इन बृद्धन पै छाई लरिकाई है ॥
हमारे तरफ़ एक लोक गीत फेमस है
भर फागुन बुढ़्बा देवर लागे …
"रीझि औरि खीझि दोउ प्रकटीं हिये में साथ"
होली के दोनों पक्षों को उजागर करती – अन्दर की बात.
"सखि कै सुरंग-रंग-अंग कौ रंगेंगे आज"
ब्रज-ग्वालों की सोच की साकार प्रस्तुति
मुझे भी रंजना जी जैसी अनुभूति होने लगी है – धन्यवाद्
मधुर छंद पढ़ी के कहे सुजान …
वाह!
कहने का क्या अंदाज है! क्या अदा है!
बड़ी शिष्टता से लिखा है "देखो इन बृद्धन पै छाई लरिकाई है ॥" लिखना चाहिये था "देखो इन बूढ़न पै छाई तरुणाई है" पर भई वाह मज़ा आ गया. कल अमरेन्द्र की पोस्ट पढ़कर हँसी थी, आज आपकी पोस्ट पढ़कर आनंद आया.
ब्लॉगगन पर फागुन की चुहल बहुत बढ़िया लगी…. हम भी फागुनियाये गए हैं…..
सबसे बड़ी बात हम तो हिमांसु के हिंदी पर खुद ही को मिटाए हैं….
बहुते बढ़िया पोस्ट….
हेम-खंड हैं प्रचंड क्या चपत लगाई है
बुढवन के घात-बात पे बूढा बताई है
रीस-खीस में भी बीस हिमांशु दिसै हैं आज
छोटी सी हिम-खंड टैटानिक डूबाई है…
बहुत सुन्दर हिमांशु जी. बधाई.
महावीर शर्मा
वाह, क्या मस्ति आई है…बेहतरीन!
ब्लॉग चुहल में अब ही तो फाग छायो है
बाऊ के बुलावे ते ह म श रंग ले आयो है …
कूट-शब्द-ओट काहे कौनो जी जरायो है
कारो है आंखन में तो कारो ही नजर आयो है …
रीझी और खिझी दोउ प्रकति हिय साथ साथ
के सखी हमरी तोहे अंगूठा दिखायो है ..?….
ब्लॉग फाग यज्ञ में आपकी शब्द आहुति ने खूब रंग जमाया है …हालाँकि मुझे ना फाग में रूचि है ना होली में ….
बहुत बढ़िया हिमांशु …इसलिए ही हम आपकी प्रविष्टियों का इतना इन्तजार करते हैं और बहुत दिनों तक नहीं लिखने पर इतनी खोज खबर लेते हैं …अब इस पर कोई कुछ सोचे तो सोचे …कहे तो कहे…
बहुत आशीष ….खुश रहो और ऐसे ही बढ़िया लिखते रहो ….साहित्य सृजन की पाठकों ने तुमसे उम्मीद यूँ ही नहीं लगा रखी है …. !!
ओ क्माल कीता है! होली मुबारक!
लरिकाई को तरुणाई कीजिए।
सब वयस्क समाज है इहाँ..
विस्तृत टिप्पी बाद में।
श्रद्धेय 'महावीर' जी हमरी टिप्पणी 'चोराए' हैं
आज हम अपने भाग पर बहुत इतराइये हैं….
कृपा कर के इस 'चोराए' शब्द को पूरा सम्मान दीजियेगा….
शायद गलती से ही सही मुझे उनका आशीर्वाद मिला है…..
आज मैं बहुत खुश हूँ…
भैया, 'बाउ' के फागुन का किस्सा सुना दूँ तो ब्लॉग बिरादरी से बहरिया दिया जाऊँ 🙂
अपनी सीमा ही मानता हूँ कि विशुद्ध पौरुषमयी कोमलता और हुड़दंग को अभिव्यक्त नहीं कर पाऊँगा।
ब्रजभाषा का सहज प्रवाह और सौन्दर्य देख रहा हूँ – हाथी के पाँव में सब पाँव समा जाते हैं, अभी तो प्रारम्भ है।
अपना असर देखिए कैसी कैसी कविताई आ रही है।…
.. रिले रेस देखी होगी। मेरे बहुत दौड़ने के बाद आप ट्रैक पर प्रक़ट हुए हैं। अब आप और अमरेन्द्र जी कुछ देर दौड़िए।.. उत्सव हर हाल में जारी रहना चाहिए।
मुझे लगता है कि वीरगति पाए अपने सैनिकों को यही सही श्रद्धांजलि होगी।
बढ़िया !
ये गिरिजेशजी बहरिया दिए जाने से काहे डर रहे हैं? डरना पड़े तो ब्लॉगर काहे का 🙂