आज देखा तुम्हें अन्तर के मधुरिल द्वीप पर ! निज रूपाकाश में मधुरिम प्रभात को पुष्पायित करती,…
विकल हूँ, पहचान लूँ मैं कौन-सी वह पीर है ! अभीं आया नहीं होता वसन्त तभीं उजाड़…
आज देखा तुम्हें अन्तर के मधुरिल द्वीप पर ! निज रूपाकाश में मधुरिम प्रभात को पुष्पायित करती,…
विकल हूँ, पहचान लूँ मैं कौन-सी वह पीर है ! अभीं आया नहीं होता वसन्त तभीं उजाड़…