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September 2010

Ramyantar

अनुभूति..

आज देखा तुम्हें अन्तर के मधुरिल द्वीप पर ! निज रूपाकाश में मधुरिम प्रभात को पुष्पायित करती, हरसिंगार के कुहसिल फूल-सी, प्रणय-पर्व की मुग्ध कथा-सी बैठी थीं तुम ! अपने लुब्ध नयनों से ढाँक कर ताक रहा था तुम्हें !…

Ramyantar

कौन-सी वह पीर है ?

विकल हूँ, पहचान लूँ मैं कौन-सी वह पीर है ! अभीं आया नहीं होता वसन्त तभीं उजाड़ क्यों हो जाती है वनस्थली, क्यों हवा किसी नन्दन-वन का प्रिय-परिमल बाँटती फिरती है गली-गली, और किसी सपनीली  रात में क्यों कोयल चीख-चीख…