Sarracenia © Karen Hall प्रणय-पीयूष-घट हूँ मैं। आँख भर तड़ित-नर्तन देखता मेघ-गर्जन कान भर सुनता हुआ …
आज देखा तुम्हें अन्तर के मधुरिल द्वीप पर ! निज रूपाकाश में मधुरिम प्रभात को पुष्पायित करती,…
Photo Source : Google तुमने चुपके से मुझे बुलाया । पूजा की थाली लेकर साँझ सकारे हाथों…
तुम्हें याद है… तुमने मुझे एक घड़ी दी थी- कुहुकने वाली घड़ी। मेरे हाँथों में देकर मुस्कुराकर…
मैंने जो क्षण जी लिया है उसे पी लिया है , वही क्षण बार-बार पुकारते हैं मुझे…
तुमने अपने हृदय में जो अनन्त वेदनासमो ली हैऔर उस वेदना को हीअपनी अमूल्य सम्पत्ति समझउसे पोषित…