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तुमने चुपके से मुझे बुलाया ।
पूजा की थाली लेकर
साँझ सकारे
हाथों में, तुम चली
बिखर गयी अरुणाभा दीपक में
चली हवा
साड़ी सरकी
’सर’ से सर से
दीपक भकुआया
कँपती लौ ने संदेश पठाया
तुमने चुपके से मुझे बुलाया ।
कंगन खनका हाथों में
खन खन खन् न् न्
स्वर में, बह चली
गंध गजरे की मन में
काँपी आँखें
बन गई
श्वास-प्रश्वास
सरस सिहरन
मुख-चितवन ने संदेश पठाया
तुमने चुपके से मुझे बुलाया ।
पूर्ण चन्द्रमा-रात बैठकर
मधुरिम स्वर
तुमने गाया, पलकों से
चन्दा से ना जाने क्या बतियाया
मुग्ध हुआ
क्षण-क्षण
मन का
यह आवारापन
झूमा बचपन-सा औ’ संदेश पठाया
तुमने चुपके से मुझे बुलाया ।
nice
कंगन खनका हाथों में
खन खन खन् न् न्
स्वर में, बह चली
गंध गजरे की मन में
काँपी आँखें
बन गई
श्वाँस-प्रश्वाँस
सरस सिहरन
मुख-चितवन ने संदेश पठाया
तुमने चुपके से मुझे बुलाया ।
क्या कहूँ….. बहुत सुंदर कविता है….जीवंत उपमाओं का प्रयोग बहुत अच्छा
लगा…. सम्पूर्ण कविता दिल को छू गई….
और मैं तुम्हारी हिंदी को और कलम को नमन करता हूँ…..
बहुत अच्छी कविता….
बेहद खुबसूरत रचना लगी । कविता में प्रयोग किये गये शब्द सरल और मनभावन लगे ।
चाह की मासूमियत को फुसफुसाती हुयी कविता -बहुत अच्छी
उफ़ क्या मज़बूरी हैं
ना आते हैं ना बुलाते हैं
अद्भुत।
बहुत सुन्दर रचना है । आपकी हिन्दी सही मे बहुत सशक्त है। भावनाओं से ओत्प्रोत कविता के लिये धन्यवाद्
बहुत सुन्दर भावपूर्ण रचना है।बधाई।
मीठा गीत गुनगुनाती कविता …अपेक्षाकृत आसान शब्दों के प्रयोग से कविता मधुर बन गयी है..शहद में घुली सी …बहुत सुन्दर ….
कंगन खनका हाथों में
खन खन खन् न् न्
… पंडित बिरजू जी महाराज की जय!!!!
बेहद खुबसूरत अभिव्यक्ति सरल शब्द और मीठे से भाव दिल को छु गया शुक्रिया
ओह, सुन्दर।
अपनी क्या कहूं हिमांशु – स्पन्दन हो चले हैं कुन्द और इस प्रकार का बुलाना सुनाई नहीं पड़ता। कान भी कम सुनने लगे हैं शायद।
एक कवि अंदर था, दशकों पहले दम तोड़ गया! 🙁
bahut hi sashakt rachna……andar tak utar gayi.
Himanshu ji,
kya baat aap prem yogi hue jaa rahe hain..pahli baar aapki aisi kavita padhi hai..
meraa google naraz hai au aisi tippani karna mujhe psand nahi..bas khana poori kar rahi hun..maafi chahungi..
वाह!
निर्मल नेह नीर झम-झम झरने लगे…
बहुत सुंदर कविता.
सरल, सहज, लयात्मक, बोधगम्य और भावों से ओतप्रोत है यह रचना. साधुवाद!!
मैं तो डूब गया हिमांशु भाई आपकी कविता पढ़ते-पढ़ते….अत्यंत भावपूर्ण रचना,बधाई।
बहुत सुन्दर!
बहुत ख़ूब बहुत मधुर गीत।
बढिया रचना है भाई जी..
बहुत सुंदर भाव कही यह कंगना कोई इशारा तो नही कर रहा मिलने के लिये.खन खन खन
सुन्दर कविता. बधाई.
जीय राजा जीय !
प्रशंसा के लिए आज शब्द कम पड़ रहे हैं – जलन, दाह से परेशान हूँ। क्या रच दिए !
मुक्त छन्द से दिखते हैं पर गाए गुनगुनाए जा सकते हैं। भाव के तो क्या कहने !
बहुत ही भावपूर्ण अभिव्यक्ति है।
कंगन खनका हाथों में
खन खन खन् न् न्
स्वर में, बह चली
गंध गजरे की मन में
काँपी आँखें
बन गई
श्वास-प्रश्वास
सरस सिहरन
मुख-चितवन ने संदेश पठाया
तुमने चुपके से मुझे बुलाया ।
क्या बात है!
सादर
दीपक भकुआया और साड़ी का सरकना सर से ’सर से’
…अहा!
बहुत ही प्यारी सी कविता…छुई मुई सी…आपके शब्दों ने जैसे आँखों के आगे साकार कर दिया बिलकुल…बहुत ही प्यारा अहसास लिए…
बिना ज्यादा क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग किए भी कवता की रूमानियत पाठकों तक पहुँची।
himaanshu ji
kya kahun , bahut der se is kavita par ruka hua hoon .. man ko kahin choo gayi … pyaari se shabd liye hue kavita .. kahi kuch kah gayi .. mera salaam kabul kare ..
vijay