चुईं सुधियाँ टप-टपआँखें भर आयीं । कैसे अवगुण्ठन को खोलतुम्हें हास-बंध बाँधा थाकैसे मधु रस के दो…
“जीवन के रोयें रोयें कोमिलन के राग से कम्पित होने दो,विरह के अतिशय ज्वार कोठहरा दो कहीं…
निवृत्ति की चाह रहीअथ से भीइति से भी । अथ पर ही अटका मनइति को तो भूल…