
निवृत्ति की चाह रही
अथ से भी
इति से भी ।
अथ पर ही अटका मन
इति को तो भूल गया
गति भी अनजान हुई ।
सिद्धार्थ के गौतम बुद्ध बनने तक की घटना को आधार बनाकर रचित इन नाट्य प्रविष्टियों में विशिष्ट प्रभाव एवं अद्भुत आस्वाद है।
सिमटती हुई श्रद्धा एवं क्षीण होते सत्याचरण वाले इस समाज के लिए सत्य हरिश्चन्द्र का चरित्र-अवगाहन प्रासंगिक भी है और आवश्यक भी।
सिमटती हुई श्रद्धा एवं क्षीण होते सत्याचरण वाले इस समाज के लिए सत्य हरिश्चन्द्र का चरित्र-अवगाहन प्रासंगिक भी है और आवश्यक भी।
सौन्दर्य लहरी संस्कृत के स्तोत्र-साहित्य का गौरव-ग्रंथ व अनुपम काव्योपलब्धि है। इस ब्लॉग पर हिन्दी काव्यानुवाद सम्पूर्णतः प्रस्तुत है।
गुरुदेव टैगोर की विशिष्ट कृति गीतांजलि के गीतों का हिन्दी काव्य-भावानुवाद इस ब्लॉग पर प्रकाशित है। यह अनुवाद मूल रचना-सा आस्वाद देते हैं।
विभिन्न भाषाओं से हिन्दी में अनूदित रचनाओं को संकलित करने के साथ ही विशिष्ट संस्कृत एवं अंग्रेजी रचनाओं के हिन्दी अनुवाद भी प्रमुखतः प्रकाशित हैं।
निवृत्ति की चाह रही
अथ से भी
इति से भी ।
अथ पर ही अटका मन
इति को तो भूल गया
गति भी अनजान हुई ।
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कम शब्द – गहरी बात।
सादर
श्यामल सुमन
09955373288
http://www.manoramsuman.blogspot.com
shyamalsuman@gmail.com
सुंदर और गहन अभिव्यक्ति.
रामराम.
मेरी भी स्थिति इन दिनों कुछ ऐसी ही चल रही है -मैंने इसे वैराग्य के रूप में लिया है !
यह तो अति हो गयी.
अथ इति के बहाने एक गम्भीर कविता पढने को मिली।
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TSALIIM
SBAI
हिमान्शु जी,
आपकी कविताएं कम शब्दों में ही बड़ी बात कह जाती हैं। साधुवाद।
आपने मेरे ब्लॉग पर आकर उत्साहबर्द्धन किया। आपका शुक्रिया।
छोटे छोटे शब्दों में छुपा कर गहरी बात कही है…………