चुईं सुधियाँ टप-टप
आँखें भर आयीं ।
कैसे अवगुण्ठन को खोल
तुम्हें हास-बंध बाँधा था
कैसे मधु रस के दो बोल
बोल सहज राग साधा था,
हुई गलबहियाँ कँप-कँप
साँसे बढ़ आयीं ।
कैसे उन आँखों की फुदकन
महसूसी थी मन के आँगन
कैसे मधु-अधरों का कंपन
गूँज गया हृदय बीच स्वर बन,
स्नेहिल अनुभूतियाँ पग-पग
अन्तर लहराई ।
क्या बात है-अद्बुत कृति!!
अनुभूति की अनुपम कृति – बहुत खूब
यही तो है अज्ञेय का क्षणवाद !
मधुर स्मृति काव्य कहूँ इस को।
सुन्दर अभिव्यक्ति…विस्तृत टिपण्णी करने जितने शब्द अभी नहीं हैं मेरे पास…हिंदी के भूले बिसरे शब्दों से दुबारा जान पहचान करवाने के लिए आभार !!
सुन्दर अभिव्यक्ति!!!
aap jo bhi likhate hai ……..uname shabdo ka bada hi mahtwa hota hai jisame bhaw shabdo se susjjit ho jate hai ……atisundar
स्नेहिल अनुभूतियाँ पग-पग
अन्तर लहराई .
बहुत सुंदर .
सुन्दर अभिव्यक्ति….
सुन्दर।
अति सुन्दर रचना. आभार
अति सुन्दर अभिव्यक्ति
धन्यवाद
मुझे शिकायत है
पराया देश
छोटी छोटी बातें
नन्हे मुन्हे
बहुत सुन्दर रचना।बधाई।
bahut hi sunder
बहुत सुंदर कृति.
आभार.
तत्सम प्रधान शब्दावली में सुंदर रचना।
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
रसपूर्ण, आनंदमय प्रस्तुति……
साभार
हमसफ़र यादों का…….
bahut achchchhi kavita.. aabhar
सुधियां होती ही ऐसी हैं। कोहरी सी घेरती हैं। फिर गहन होकर टपकने लगती हैं।
इस रचना पर कहने को कुछ है ही नहीं ! अद्भुत !