“जीवन के रोयें रोयें को
मिलन के राग से कम्पित होने दो,
विरह के अतिशय ज्वार को
ठहरा दो कहीं अपने होठों पर,
दिव्य प्रेम की अक्षुण्णता को
समो लो अपने हृदय में, और
अपने इस उद्दाम यौवन की देहरी पर
प्रतीक्षा का पंछी उतरने दो;
फिर देखो-
मैं बिना बुलाये ही
तुम्हारे द्वार का अतिथि बन कर आऊँगा !”
अपने प्रेम-पत्र में
यही तो लिखा मैंने
विश्वास का दीप जला कर
दिये की वासंती रोशनी में ।
bahut hi khusoorat rachana ……….ek stara ki bhawabhiwyakti
atyant behtareen rachana.
अपने इस उद्दाम यौवन की देहरी पर
प्रतीक्षा का पंछी उतरने दो;
bahut khoob.
इस युग में प्रतीक्षा को तो भुलाने लगे हैं लोग। इंस्टेण्ट का जमाना है।
बेहद सुंदरतम भाव और उतनी ही सुंदरतम अभिव्यक्ति.
रामराम.
बेहतरीन रचना हिमाशु जी बधाई.
बहुत अच्छे भाव हैं, पर कविता कुछ अधिक गद्यात्मक हो चली है।
अच्छी रचना. लेकिन भैय्या लड़की भाग जायेगी.
बेहतरीन रचना….
…पर एक बात समझ में नहीं आई… SMS और इन्टरनेट मेसेंजर के युग में आप प्रेम पत्र क्यों लिख रहे हैं 🙂
प्रेम कि अभिव्यक्ति अति सुन्दर है ।
bahut sundar rachnaa..premikaa nahin bhagegee..par shrimati jee ko mat sunaaeeyegaa..khana nahin milegaa..sach mein aajmaayaa hua prayog hai bhai..
भावपूर्ण!
बहुत सुन्दर रचना..
bhav bhi sundar !
bhasha bhi sundar !
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___________________BADHAAI BHI SUNDAR !
अभिव्यक्ति आकर्षक है ।
devbdo
हा प्रिये, क्यों न समझ पाई तुम्हें तब मैं’
कान्वेन्ट में जो पढ़ी थी मुई अभागन मैं 🙂
आह!…इस खूबसूरत कविता के बाद अमर साब के इस अद्भुत कमेंट को पढ़ना…
🙂