मैं जानता हूँ
तुम्हारे भीतर
कोई ’क्रान्ति’ नहीं पनपती
पर बीज बोना तुम्हारा स्वभाव है।
हाथ में कोई ‘मशाल’ नहीं है तुम्हारे
पर तुम्हारे श्रम-ज्वाल से
भासित है हर दिशा।
मेरे प्यारे ’मज़दूर’!
यह तुम हो
जो धरती की
गहरी जड़ों को
नापते हो अपनी कुदाल से
रखते हो अदम्य साहस,
प्रमाणित नहीं करते हो स्वयं को
फिर भी
होते हो शाश्वत
’ज्योतिर्धर’।
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मूषक पर पहले से ही जुड़ा हुआ हूँ और यह प्रिय है मुझे! आभार।
बहुत ही उम्दा ….. Very nice collection in Hindi !! 🙂
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