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Capsule Poetry, Ramyantar

मेरे प्यारे मज़दूर

मैं जानता हूँ तुम्हारे भीतर कोई ’क्रान्ति’ नहीं पनपती पर बीज बोना तुम्हारा स्वभाव है। हाथ में कोई ‘मशाल’ नहीं है तुम्हारे पर तुम्हारे श्रम-ज्वाल से भासित है हर दिशा। मेरे प्यारे ’मज़दूर’! यह तुम हो जो धरती की गहरी…

Poetry, Ramyantar

महसूस करता हूँ, सब तो कविता है

 (Photo credit: soul-nectar) मैं रोज सबेरे जगता हूँ दिन के उजाले की आहट और तुम्हारी मुस्कराहट साफ़ महसूस करता हूँ। चाय की प्याली से उठती स्नेह की भाप चेहरे पर छा जाती है। फ़िर नहाकर देंह ही नहींमन भी साफ़…

Capsule Poetry, Poetry, Ramyantar

कविता और कविता का बहुत कुछ

१) कविता उमड़ आयी अन्तर्मन में जैसे उतर आता है मां के स्तनों में दूध। २)  कविता का छन्दसध गया वैसे हीजैसे स्काउट की ताली मेंमन का उत्साह। ३)  कविता का शब्दसज गया बहुविधिजैसे बनने को मालासजते हैं फूल। ४)कविता…

Poetry, Ramyantar

हंसी का व्यवहार

Hibiscus (Photo : soul-nectar) आंसू खूब बहें, बहते जांय हंसी नहीं आती, पर हंसी खूब आये तो आंखें भर-भर जाती हैं आंसू आ जाते हैं आंखों में। कौन-सा संकेत है यह प्रकृति का? वस्तुतः कितना विलक्षण है हंसी का यह…

Poetry, Ramyantar

तो उसका अंशभूत सौन्दर्य निरखूंगा

Rose Bud (Photo credit: soul-nectar) यदि देख सका किसी वस्तु को उसकी पूर्णता में तो रचूंगा जो कुछ वह पूर्णतः अनावरित करेगा स्वयं को सौन्दर्य है क्या सिवाय एक केन्द्रीभूत सत्य के?जैसे सूरज या फिरजैसे आत्माजो अपनी अभिव्यक्ति,अपने प्रसार में…

Capsule Poetry, Poetry, Ramyantar

कल-आज आजकल

आज तुम      मेरे सम्मुख हो, मैं तुम्हारे ‘आज’ को ‘कल’ की रोशनी में देखना चाहता हूँ। देखता हूँ तुम्हारे ‘आज का कल’ ‘कल के आज’ से तनिक भी संगति नहीं बैठाता। कल-आज आजकल समझ में नहीं आते मुझे।

Poetry, Ramyantar

एक गाँव

सड़क उसके बीच से गुजरती है गुजरते हैं सड़क पर चलने वाले लोग पर थोड़ा ठहर जाते हैं, दम साध कर खड़ा है वह कुछ तो आकर्षण है उसमें कि सड़क से गुजरने वाला हर आदमी ठहर कर निरख ही…

Poetry, Ramyantar

वहाँ भी डाकिया होगा?

enveloppen (Photo credit: Wikipedia) क्यों ऐसा होता था कि डाकिया रोज आता था पर तुम्हारा लिखा हुआ पत्र नहीं लाता था। क्यों ऐसा होता था कई बार कि जब भी मैंने डाकिये से माँगा तुम्हारा पत्र उसने थमा दिये मनीआर्डर…

Capsule Poetry, Poetry, Ramyantar

और ……अंधेरा

(Photo credit: MarianOne) आज फिर एक चहकता हुआ दिन गुमसुमायी सांझ में परिवर्तित हो गया, दिन का शोर खामोशी में धुल गया, रात दस्तक देने लगी। हर रोज शायद यही होता है फिर खास क्या है? शायद यही, कि मेरे…

Capsule Poetry, Poetry, Ramyantar

छोटी सी कविता

विश्वास के घर में अमरुद का एक पेंड़ था एक दिन उस पेंड़ की ऊँची फ़ुनगी पर एक उल्लू बैठा दिखा, माँ ने कहा- ‘उल्लू’ पिता ने कहा- ‘अशुभ, अपशकुन’, फ़िर पेंड़ कट गया। अब, उल्लू तीसरी मंजिल की मुंडेर…